राह की धुन

हम अपनी धुन में चलते थे

सब ओर से बेखबर

अपनी राह बनाते चलते

चाहे रास्तें हों कितने भी दुर्गम।

चलने की जिद्द थी बस,

मंजिल भी खुद तय करनी थी

घिसी पिटी सड़क पे न चलना था

पथरीला पथ था मंजूर।

 

जूनून देख ऐसा

कईयों ने साथ दिया

कोई दो कदम साथ चला

किसी ने ताली बजाई

तो किसी ने पीठ थपथपाई।

 

पर कुछ ऐसे भी थे

जो नाखुश थे इस सफर से

हर कदम पे फब्ती कसते थे

हर मोड़ पर नुक्ताचीनी करते थे।

 

पर गिला न इनसे था कोई

हर व्यक्ति अपनी सोच से सीमित है

छोटी सोच वालों से पड़ा पाला

तो समझ में आया पक्के इरादे

दूर तलक ले जाते हैं।

 

ये न हो तो पथ कंकरीला न होगा

न मुश्किलों का सामना होगा

इनकी कड़वाहट की तपिश में ही

तो अपना हौसला बुलंद  होगा।

 

इसी लिए पथ पर चुभने वाले कांटा

उतना ही श्रेयस्कर है

जितने कि छायादार घने पेड़

जो ठंडक पहुँचाते है।

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