सब सदा ही पूछते रहते हैं
फेसबुक पर दर्शन क्यों न होते हैं?
अब अपनी व्यथा को क्या ब्यान करें
कई दुखद किस्से हमारे साथ ऐसे घटे
कि हमने तो भैया बस यह ठान ली
अब करना पड़ेगा फेसबुक को बाई-बाई।
हुआ यूँ कि इक दिन दोस्ती का प्रस्ताव आया
कहा तुम्हारे साथ स्कूल में पढ़ता आया।
स्कूल का नाम सुन हम भावुक हो जाते हैं
फिर दिमाग की नही, दिल की मानते हैं।
बंदा हमें बिलकुल भी याद न था
बस नाम भर कुछ सुना सा था।
तो हमने आनन-फानन में हाँ कर दी
पर उसने तो इन्तेहा ही कर दी।
उसके शेयर,लाइक और कमेंट्स ने हमें परेशान कर दिया
बेफजूल की तारीफ ने पानी-पानी कर दिया।
पर एक दिन तो हद कर दी
हमारी फेमिली फोटो देख बिन माँगे राय दे दी।
पतिदेव के बालों में झलकती सफेदी देख बोला
‘इनको बरगंडी कलर करना चाहिए थोड़ा!’
ये अपने बालों को ले सेंस्टिव हैं जरा
कलमुँहे को तुरंत हमने अनफ्रेंड करा।
सहेलियों की विदेश यात्राओं की तस्वीरों से इन्सपायर हो कर
हमने झटपट शेयर की बर्फबारी की तस्वीर अपनी वॉल पर
और कैप्शन दिया ‘हॉलिडे इन स्प्लेनडिड स्विट्जरलैंड’
तुरन्त दीदी का कमेन्ट आ गया और हमारी तो बज गई बैंड!
बोलीं, ‘अरे छोटी यह तो शिमला वाली है ना!’
कसम से हम गला घोंट देते अगर सामने होतीं ना !
पतिदेव के जन्मदिन पर हमने, अंग्रेजी में बहुत ही लवी-डवी अंदाज वाली
ऐसी रोमांटिक कविता ढूँढ-ढूँढ कर निकाल के डाली,
सोचा जनाब हो जाएंगे कायल और कहेंगे, ‘वाह पत्नी जी!’
पर इन्होंने ऐसी जोरदार फटकार लगाई
हम तो कहीं के न रहे भई!
कहा कि इससे अच्छा कर देती गहने की फरमाइश,
प्राइवेट इमोशन की ऐसी बेहूदा पब्लिक नुमाइश!
जो कविता डाली उसका मतलब तो समझ लेती
वह मरणोपरांत यादों की थी अभिव्यक्ति!
जब ऐसे-ऐसे भयंकर हादसे एक के बाद एक गुजरे
तो भला कैसे कोई जिल्लत बार-बार भुगते?
सोचा, हम जैसे हैं वैसे ही ठीक हैं
बेगानों में बेइज्जती कराना क्या ठीक है?
बस फिर तो हमने फेसबुक से तौबा कर ली
और तब से हमने वाहट्सैप में ही शरण ली।
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