(एक गृहणी की व्यथा)
पति से ऐंठ-ऐंठ कर जो हजार के नोट दाल के डब्बे में दबाये थे,
बबलू की युनिफार्म से बचा पाँच सौ का पत्ता जो साड़ी की तह में छिपाया था,
वो राखी – टिक्के के शगुन, जो शादियों में मिले लिफाफे थे,
इतने सालों से यतन से जोड़े छुट्टे को
पिछले हफ्ते ही हजार के नोटों में तबदील कराया था।
मोदीजी आप ने इक पल में मेरे सपनों पर पानी फेर दिया,
तिल तिल जोड़े तिनकों को बस एक वक्तव्य में बिखेर दिया।
नई साड़ी, नए झुमके सब रद्द हो गए,
मेरी किट्टी की पार्टी के प्लान सारे धरे रह गए।
इन पैसों से हाथ धो बैठूँ गर इन से मैं जिक्र करूँ,
न बोलूँ, तो यह पैसे मिट्टी के मोल ही जाएँगे।
विकट समस्या है गर मैं यह कबूल करूँ,
वर्ना मेरी सारी पूँजी मेरे पति परमेश्वर ले जाएँगे।
सारे पर्स, दराज़ खंगाल कर कुल
तीन सौ बत्तीस रुपए इक्ट्ठा हुए
दूध भाजी तो आ गई पर गैस वाले
सिलेंडर बिना दिये ही चलता हुए।
काम वाली बाई ने दो सौ की गुहार की
मेरी मजबूरी जाहिर करने पर
काम पर न आने की धमकी दी।
कल बैंक में लम्बी कतारे होंगी
एटीएम पर दे मारामारी होगी
दो-चार हजार के लिए अब रोज बैंक के चक्कर लगाओ
नौकरी – रसोई छोड़ सब अब सौ-सौ के नोट गिनती होंगी।
काले धंधे करने वालों को मोदीजी, आप बेशक धरो
काला धन पकड़ने की यह स्कीम अच्छी है
तो हम जैसी गृहणीयों का भी थोड़ा ध्यान करो।
हमारी सेविंग ब्लैक नही, हमें अपने पैसे खरचने दो।
मोदीजी काश आप इक गृहणी का दुख समझ पाते
पत्नी साथ रहती तो हमारी बात समझ पाते।
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