Perhaps this is no longer the reality of the urban educated girl, but in many parts of our country, this is how it is.
👇👇
सेज सजी है,
मैं गठरी बन,
तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ।
मेरे शरीर को छूने से पहले
तुम मेरे दिल को
टटोलो तो अच्छा है।
पर तुम रिवायत कहाँ तोड़ोगे!
हो सके तो कपड़ों के साथ
अपनी अना भी
कुर्सी पर रख देना।
कल सुबह यह शरीर
अजनबी न रहेंगे।
पर हमें एक दूसरे को
जानने में वक्त लगेगा।
दिल भी सेज पर सजाया था
पर तुम्हें नजर ना आया।
चलो, सारी उम्र पड़ी है
दिल बाँचने को।
और न भी बाँचा
तो कुछ न होगा
जीवन रेल की पटरी
सा चलता रहेगा
साथ- साथ पर हमेशा दूर।