दिशाएँ
जब मैं घर से चली
सड़क थी सीधी- सीधी
फिर आगे उस में कई
और सड़कें आ मिली।
इक दाएँ मुड़ी
इक बाएँ मुड़ी
एक मेरे पीछे
एक मेरे आगे।
जो उगते सूर्य की ओर जाती है
वह पूर्व दिशा कहलाती है
जो डूबते सूर्य की ओर चली
वह पश्चिम दिशा की ओर चली।
जब पूरब मेरे दायें में
और पश्चिम मेरी बाईं ओर
तब उत्तर मेरे सामने है
और दक्षिण है पीछे की ओर।
पानी
जब टिपटिप बूंदें गिरती हैं
तो कितनी अच्छी लगती हैं
पर कोई मुझे बताएगा
बादल में पानी कौन भरता है?
जब सागर का पानी
गर्मी से छू हो जाता है
तो बूंदे बनकर वह
बादल को घर बनाता है
जब बूंदे हो जाती हैं ज्यादा
तो बादल गड़गड़ करते हैं
फिर आपस में टकरा वो
हम सब पर बरसते हैं।
सागर से अम्बर जाए
फिर अम्बर से धरती पर आए
धरती पर झीलों, नदियों में
फिर नदियों से बहे सागर में
बस पानी की यही कहानी
चले जहाँ से, वहीं खत्म कहानी।
बादल
तुम रोज़ मुझे देखा करते हो
मैं कभी न एक जैसा दिखूँ
कभी मैं मोटा, कभी मैं छोटा
कभी मैं बिलकुल ही न दिखूँ।
मैं बड़ा शक्तिशाली हूँ
सूरज को मैं कभी ढक लूँ
कभी चांद से लुक्का- छिप्पी
कभी दूँ मैं तारों को पप्पी।
जब मैं काला और मोटा हो जाऊँ
तो झमझम,झमझम बारिश पड़े,
जब मैं सफेद आँचल सा लहराऊँ
तो ठंडी- ठंडी बयार बहे।
मैं जब अपने भाइयों से लड़ूँ
तब बिजलियाँ कड़क जाएँ
और कभी- कभी तो हम मिलकर
तुम पर ओलों की बौछार लाएँ।
मैं मस्त मौला, मतवाला
सारी दुनिया की सैर करूँ
आज यहाँ, कल वहाँ
मैं शहर- शहर घुसपैठ करूँ।
अब मैं चलता हूँ
देर हो रही है
मुझे आज बरसना होगा
फिर मिलूँगा
तुम से आकर
जब तुम्हें भिगोना होगा।
धरती
न मम्मी की बिंदी जैसी
न पिंकी की गेंद जैसी
मैं तो हूँ कुछ नारंगी जैसी
बूझो- बूझो मैं हूँ कौन?
सूरज भी है गोल- गोल
और हैं चंदा और मंगल
बाकी के ग्रह भी हैं गोल
गोल है सारा सौर मंडल।
अगर तुम निकल पड़ोगे पैदल
और चलोगे सीधे- सीधे
तो एक दिन वहीं पहुँचोगे
चले थे जहाँ से इस पथ पे।
मैं नीला ग्रह कहलाती
जीवन सिर्फ़ मुझ पर पनपता
पानी तो है जीवनदायी
मैं हूँ तुम्हारी अपनी धरती।
नानी को सिखाई ई मेल
मेरी नानी, प्यारी नानी सबसे है निराली
जन्म से लेकर अब तक सुलझाई मेरी हर पहेली
आपने हर चीज उंगली पकड़ सिखाई है
कितनी ही कहानियाँ आपने अब तक हमें सुनाईं हैं।
पर नानी आज मैं आपको सिखाऊँगा
ई मेल कैसे करते हैं, मैं आपको बताऊँगा
मामा को जो चिट्ठी तुम लिखतीं,पंद्रह दिन में मिलती है
पर ई मेल तो झट से ही अमरीका जा पहुँती है।
जैसे आप कलम से लिखतीं
बस वैसे ही उँगलियों से बटन चलाने हैं
खत खत्म होते ही सेंड का बटन दबाना है।
जैसे ही इसे आपने सेंड किया
अमरीका में मामा ने रिसीव किया
इस तरह से आपका खत तुरंत पहुँचे
और आपका हाल सुनाए
सब सकुशल है पढ़ मामा खुश हो जाएँ।
देखो इतना आसान ई मेल भेज पाना है
जब मैं वापिस जाउँगा तो मुझे भी मेल करना
नानी आपसे सीखा बहुत कुछ यह माना,
पर ई मेल करना, आपको मैंने ही सिखाया है।
घर
रेगिस्तान में होता तंबू
आर्टिक में ईगलू
बाँस के घर होते कहीं
तो होते शिकारे कहीं
कैरावान में भी रहते लोग
और रहते मचानों में
भाँति- भाँति के घर होते हैं
हर जगह इस दुनिया में।
गाँव में होते कच्चे घर
शहर में पक्के मकान
कोई आलिशान बंगले में रहता
तो कोई गगनचुम्बी इमारत में
किसी को भाये ताड़ की कुटिया
तो कोई रहे महलों किलों में।
दुनिया भर में हो चाहे ही
कितने ही न्यारे घर
सबका मन लगे अपने घर में ही
क्योंकि घर है आखिर घर
चाहे छोटा हो या बड़ा
अपना घर सबसे भला।
सावधान
चिंटू बोला मम्मी से एक दिन
अब मैं बड़ा हो गया हूँ
कभी कहती हो माचिस न जलाना
कभी कहती चाकू न उठाना
कभी होती इस्तरी गरम
तो कभी गैस पर भगौना गरम!
बाजार अकेले न जाओ
सड़क अकेले न पार करो
सीढ़ियों पर मत भागो
लिफ्ट में अकेले न चढ़ा करो।
मम्मी हर बात में यह मत
वह मत न करा करो।
माना आपसे छोटा हूँ,
पर अब मैं बड़ा हो रहा हूँ।
काम कैसे – कैसे
मुझे बड़े हो पापा नही बनना
न ही माँ का काम सुहाए
सोचती हूँ कुछ ऐसा करूँ
जो आराम से हो जाए।
पापा मेरे हैं डाॅक्टर
सारा दिन बस काम
माँ जाए बैंक सुबह – सुबह
काम करते हो जाए शाम।
मिस्त्री सारा दिन धूप में तपते
और किसान खेतों में थकते
डाकिया घर- घर में जाता
दर्जी कपड़े सिलता रहता।
मोची, सिपाही या फिर टीचर
सब मेहनत करते डटकर
बढ़ई, पायलट हो या अफसर
काम से कोई न निकले बचकर।
मैं तो छोटी सी बच्ची हूँ
इतनी मेहनत न कर पाऊँगी
सोचती हूँ एक गाड़ी लेकर
मैं तो टैक्सी ही चलाऊँगी।
जब मन किया काम करूँगी
बाकी समय आराम करूँगी
इस में है बहुत आराम भाई
मैं तो बड़ी हो ड्राइवर ही बनूँगी।