कल अचानक जब पलट कर देखा
तो पाया
हमेशा मेरे पीछे चलनेवाला
कहीं खो गया चलते चलते
विस्मित,चकित और भ्रमित मैं
ढूँढू उसे ऊपर नीचे
पर उसका न कोई पता लगा
मैं पूूछूँ किस किससे?
जब से होश संभाली
उसे पाया अपने संग
कभी वह मुझसे बड़ा हो जाता
और कभी बिलकुल छोटा
बचपन में हम कई खेल हैं खेले
मेरे सुख दुख का वो साथी
न जाने कब हो गया अलग।
आगे बढ़ते बढ़ते
कभी न देखा उसे पलट के
बस लक्ष्य पर टिकी थी आँखें
समय नही था कि कुछ देर तो बैठे
इसी भागदौड़ में छूट गया साया
और अपने को अकेला पाया।
इन्ही सोचों में डूबी हुई थी
कि भागते भागते बेटा आया
और बोला,
‘माँ देखो मेरे पीछे कौन खड़ा है
मैं जो करूँ,यह वही करे है
यह तो मेरे,साथ चले है
माँ यह मेरा कौन है?’
मैं बोली ‘यह तेरा है साया
कोई तेरे साथ रहे न रहे
यह सदैव तेरा साथ देगा
तेरे पीछे-पीछे यह चलेगा
मैं रहूँ या न रहूँ
यह सदा तेरा ही रहेगा’।
Bahut khoob
Mera saaya
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