कट्टी बट्टी खेली बहुत हमने
कहा सुनी भी काफी हुई
खेल बहुतेरे खेले हमने
लड़ाइयाँ भी कम न हुई
बचपन की खट्टी मीठी यादों में
है खुश्बू दोस्ती की समाई।
जीवन की राह पर चल पड़े सब
अपनी धुन में अपने लक्ष्य की ओर
छूटे साथी पता न चला कब
बँध गई जीवन साथी संग डोर।
दाल रोटी, मकान, बच्चे, माँ- बाप
चहुँ ओर जिम्मेदारियाँ, और एक अकेले आप।
जब मिली फुरसत, याद आई वो गलियाँ
वह संगी साथी, वह रंग रलियाँ।
जुड़े फिर से वो ताने बाने
गुनगुनाये फिर वह गीत पुराने
खिलखिलाये फिर दोहरा कर बचपन
सच दोस्तों से बढ़ कर न कोई परिजन।
उम्र भूल आज बन बैठे फिर बच्चे हम
वही हास- परिहास, वही मनुहार
कट्टी बट्टी खेलें आज भी हम
गर गुज़रे किसी की बात नागवार
चुप्पी साध बैठ लेते हैं
जैसे सुनी ही न हो गुहार।
जीवन के इस मोड़ पर छोड़ो शिकवे गिले
आज जो फिर से जो बरसों बिछड़े मिले
इस पल को मिल मिल कर, बार बार जियो
दोस्तों के नाम दोस्तों, दोस्ती का प्याला पियो।।